Weird Court: हमारे देश विविधताओं का देश है और यहां कई जगहों पर अलग अलग तरह की परंपराएं और रीति रिवाज निभाए जाते हैं। कई रीति रिवाज और परंपराएं तो बहुत विचित्र और अनोखी होती हैं। इनके बारे में जानकर हरकोई हैरान रह जाता है। आपने हमारे देश की अदालतें यानी कोर्ट तो देखे होंगे। जब कोई व्यक्ति जुर्म करता है तो उस पर कोर्ट में केस चलता है। दोषी पाए जाने पर आरोपी को कोर्ट द्वारा सजा सुनाई जाती है।
लेकिन क्या आपने किसी ऐसी कोर्ट (Weird Court) के बारे में सुना है, जिसमें भगवान के खिलाफ ही मुकदमा चलाया जाता है। इतना ही नहीं दोषी पाए जाने पर भगवान को सजा भी सुनाई जाती है। इस विचित्र परंपरा के बारे में जानकर आपको अक्षय कुमार की फिल्म ‘ओ माय गॉड’ की याद आ जाएगी। जानते हैं कि इस अनोखी अदालत (Weird Court) के बारे में, जिसमें भगवान पर केस चलाया जाता है। यह अनोखी अदालत (Weird Court) छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में लगती है।
बस्तर की Weird Court:
बस्तर, छत्तीसगढ़ का आदिवासी बहुल क्षेत्र, अपनी सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं के लिए जाना जाता है। यहां की एक अनोखी प्रथा लोगों का ध्यान आकर्षित करती है, जो न केवल अनूठी है, बल्कि मानवीय विश्वास और आस्था का अद्वितीय उदाहरण भी है। बस्तर की इस अदालती व्यवस्था (Weird Court) में इंसानों के बीच नहीं, बल्कि भगवान के खिलाफ मुकदमा चलता है। यह अनोखी परंपरा आदिवासी समाज की गहरी धार्मिक आस्थाओं और उनके प्रकृति के साथ अटूट संबंध को दर्शाती है।
भगवान पर चलाया जाता है मुकदमा:
दरअस, लबस्तर के आदिवासी समाज में यह मान्यता है कि उनके जीवन की हर घटना चाहे वह अच्छी हो या बुरी, उनमें देवी-देवताओं की भूमिका होती है। यहां लोग मानते हैं कि जो कुछ हो रहा है, वह ईश्वर की मर्जी से हो रही है। जब समुदाय में कोई बड़ी समस्या या प्राकृतिक आपदा आती है, तब लोग इसे अपने देवी-देवताओं की नाराजगी के रूप में देखते हैं।
यदि उनके अनुरोधों और पूजा-अर्चना के बावजूद समस्याएं दूर नहीं होतीं, तो लोग देवी-देवताओं से नाखुश हो जाते हैं। ऐसे में वे ‘अदालत’ (Weird Court) का सहारा लेते हैं, जहां देवताओं पर आरोप लगाया जाता है। बस्तर में इसे ‘देवता के खिलाफ मुकदमा’ (Weird Court) कहा जाता है, और यह प्रथा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है।
भंगाराम मंदिर में लगती है जन अदालत:
दरअसल, बस्तर में आदिवासी आबादी 70 प्रतिशत है। यहां गोंड, मारिया, भतरा, हल्बा और धुरवा जैसी जनजातियां रहती हैं। यहां पर भंगाराम देवी का एक मंदिर है। इस मंदिर में हर साल मानसून के दौरान भादो जात्रा उत्सव मनाया जाता है। इसी दौरान यहां जन अदालत (Weird Court) लगाई जाती है। यह एक धार्मिक और सामुदायिक आयोजन होता है, जहां पूरे गांव के लोग एकत्र होते हैं। एक प्रमुख आदिवासी पुजारी या प्रमुख व्यक्ति, जिसे ‘गायता’ कहा जाता है, इस पूरी प्रक्रिया का संचालन करता है। गायता का चयन गांव के बुजुर्गों और पंडितों द्वारा किया जाता है।
मुकदमे (Weird Court) की शुरुआत तब होती है, जब गांव के प्रमुख लोग यह तय करते हैं कि समस्या के लिए किस देवता को जिम्मेदार ठहराया जाए। इसके बाद उस देवता की मूर्ति या प्रतीकात्मक रूप से उसे अदालत में लाया जाता है। ग्रामीण उस देवता पर अपनी शिकायतें प्रस्तुत करते हैं और उसकी पूजा या अनुष्ठान के बावजूद समाधान न होने का कारण पूछते हैं।
जानवर देते हैं गवाही:
मानसून के दौरान भंगाराम देवी मंदिर में तीन दिन का भादो जात्रा उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान भंगाराम देवी सभी मुकदमों की अध्यक्षता करती हैं। महोत्सव के दौरान जब भगवान या देवताओं पर आरोप लगाते हैं तो उन मुकदमों में गवाही मुर्गियां और अन्य पशु-पक्षी देते हैं। फसल खराब होने से लेकर बीमारी तक इस अदालत में भगवान के खिलाफ सभी तरह के मुकदमे दर्ज होते हैं।
देवता की ओर से भी होता है एक वकील:
इस अनोखी अदालत की खास बात यह है कि अन्य सामान्य अदालतों की तरह आरोपी पक्ष देवता की ओर से बचाव के लिए एक ‘वकील’ या पुजारी नियुक्त किया जाता है।वह वकील उस जन अदालत में देवता का पक्ष रखता है। वह तर्क करता है कि देवी-देवता ने अपने भक्तों की उपेक्षा क्यों नहीं की, और समस्या के पीछे कोई अन्य कारण हो सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान समुदाय के बुजुर्ग और जानकार लोग भी शामिल होते हैं, जो अपने अनुभवों के आधार पर राय देते हैं। वे उन परंपराओं, अनुष्ठानों और धार्मिक कर्तव्यों का उल्लेख करते हैं, जिन्हें पूरा न करने पर देवता नाराज हो सकते हैं।
दोषी पाए जाने पर भगवान को मिलती है ये सजा:
मुकदमें में सुनवाई के दौरान अगर देवता दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें सजा भी सुनाई जाती है। सजा के तौर पर देवता की मूर्ती को एक निश्चित समय के लिए मंदिर के पीछे रख दिया जाता है। कई बार तो यह सजा आजीवन की भी हो सकती है। हालांकि ज्यादातर मामलों में जब तक भगवान अपनी गलती सुधार नहीं लेते, तब तक उन्हें मंदिर के पीछे रखा जाता है। वहीं शिकायतकर्ता की समस्या का समाधान होने के बाद भगवान को फिर से मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। मुकदमे के बाद सभी के लिए महाभोज का भी आयोजन किया जाता है।