Dahi Handi: दही हांडी का त्योहार महाराष्ट्र और भारत के अन्य हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। दही हांडी का त्योहार भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है| इस पर्व को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव यानि जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाता है| यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की याद दिलाता है|
इस दिन भक्तों की टोली, जिसे ‘गोविंदा’ कहते हैं, एक-दूसरे के ऊपर मानव पिरामिड बनाकर ऊँचाई पर लटकी मटकी, जिसे ‘दही हांडी’ कहते हैं, फोड़ने का प्रयास करती है। दही हांडी का यह आयोजन जितना धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, उतना ही यह उत्साह, साहस और समर्पण का भी प्रतीक माना जाता है।
Dahi Handi महत्व:
भगवान श्रीकृष्ण को उनके बाल्यकाल में माखन चोर के नाम से जाना जाता था। गोकुल में अपने साथियों के साथ श्रीकृष्ण घर-घर जाकर माखन और दही चुराते थे। गाँव की महिलाएँ माखन और दही को ऊँचाई पर लटका देती थीं ताकि श्रीकृष्ण उसे न चुरा सकें, लेकिन श्रीकृष्ण और उनके साथी मिलकर मानव पिरामिड बनाते थे और मटकी फोड़ देते थे।
यही बाल लीला आज के समय में दही हांडी के रूप में मनाई जाती है। जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण अपने बाल स्वरूप में माखन चुराने के लिए मटकी फोड़ देते थे| उसी तरह उनके भक्त कन्हैया की चंचल लीलाओं को याद करते हुए दही की हांडी फोड़कर यह त्योहार मनाते हैं|
महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की कई जगहों जैसे मथुरा, वृंदावन और गोकुल में यह त्योहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है | इस त्योहार पर चारों ओर रंग गुलाल उड़ाते है ,पानी की बौछार की जाती है| फिर कई घंटो की कड़ी मेहनत के बाद गोविंदा दही की हांडी फोड़ने में कामयाब होते हैं|
Dahi Handi का इतिहास:
दही हांडी का इतिहास सदियों पुराना है। सबसे पहले इस पर्व को महाराष्ट्र में मनाया जाता था, लेकिन समय के साथ-साथ यह पूरे भारत में लोकप्रिय हो गया। दही हांडी का सबसे बड़ा आयोजन महाराष्ट्र के मुंबई और पुणे शहर में होता है। अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग मंडलियाँ और समितियाँ इस आयोजन की तैयारी करती हैं और ऊँचाई पर मटकी लगाती हैं।
ऐसा माना जाता है कि 18वीं सदी में पेशवाओं के समय से दही हांडी की परंपरा महाराष्ट्र में शुरू हुई थी। उस समय, इसे एक धार्मिक आयोजन के रूप में देखा जाता था, लेकिन समय के साथ यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजन बन गया। वर्तमान समय में, दही हांडी के आयोजन में करोड़ों रुपये के इनाम रखे जाते हैं, और इसमें लाखों लोग हिस्सा लेते हैं।
Dahi Handi की लोकप्रियता:
समय के साथ दही हांडी का स्वरूप भी बदलता गया है। पहले यह केवल धार्मिक आयोजन होता था, लेकिन अब यह एक बड़ा सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम बन चुका है। विभिन्न सामाजिक संगठन और बड़े-बड़े राजनीतिक दल भी इस आयोजन में भाग लेते हैं। विभिन्न मंडलियाँ और समितियाँ मिलकर बड़े-बड़े आयोजन करती हैं, जहाँ लाखों लोग एकत्रित होते हैं।
मुंबई में दही हांडी का आयोजन बड़े स्तर पर होता है, और यहाँ के गोविंदा मंडलियों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है कि कौन सबसे ऊँची मटकी फोड़ता है। इस प्रतिस्पर्धा में भाग लेने वाले गोविंदा की टोली मानव पिरामिड बनाते हैं, जो 7 से 9 लेयर तक हो सकती है। इस आयोजन में कई बड़े इनाम दिए जाते हैं।
Dahi Handi में आने वाली चुनौतियाँ:
दही हांडी का पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा भी है जो लोगों को एकजुट करती है। दही हांडी के आयोजन में रोमांच और उत्साह तो होता है, लेकिन इसके साथ ही गोविंदा को कुछ चुनौतियाँ का सामना भी करना पड़ता है। ऊँचाई पर मटकी फोड़ने के दौरान कई बार गोविंदा के सदस्यों को चोट लग जाती है। इसीलिए, पिछले कुछ वर्षों में दही हांडी के आयोजन के लिए कुछ नियम और कानून भी बनाए गए हैं।
अब दही हांडी की ऊँचाई को सीमित किया गया है, और गोविंदा के सदस्यों के लिए सुरक्षा उपकरणों का उपयोग अनिवार्य कर दिया गया है। इसके अलावा, बच्चों को दही हांडी की प्रतिस्पर्धा में भाग लेने से रोकने के लिए भी नियम बनाए गए हैं। हालांकि, इन सब के बावजूद, दही हांडी का उत्साह और जोश कम नहीं हुआ है।
डिस्क्लेमर: इस लेख में प्रस्तुत जानकारी ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। विभिन्न माध्यमों से एकत्रित करके ये जानकारियाँ आप तक पहुँचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज़ सूचना पहुँचाना है। viralnewsvibes.com इस जानकारी की सटीकता, पूर्णता, या उपयोगिता के बारे में कोई दावा नहीं करता और इसे अपनाने से होने वाले किसी भी परिणाम के लिए जिम्मेदार नहीं होगा। पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने विवेक और निर्णय का उपयोग करें।]