Govardhan puja 2024: क्यों उठाया श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत?जानें गोवर्धन पूजा की तिथि, महत्व और विधि

Govardhan puja 2024: भारत में गोवर्धन पूजा का अपना विशेष स्थान है। यह पर्व दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है और इसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है।

November 01, 2024
Govardhan puja
Govardhan puja 2024: क्यों उठाया श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत?जानें गोवर्धन पूजा की तिथि, महत्व और विधि

Govardhan puja 2024: भारत में गोवर्धन पूजा का अपना विशेष स्थान है। यह पर्व दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है और इसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। इस वर्ष गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को मनाई जाएगी। इसे कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है।

यह दिन दिवाली के ठीक एक दिन बाद आता है, इसलिए इसके उत्साह और उल्लास का माहौल दिवाली की ही तरह होता है। इस वर्ष पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 6:40 से दोपहर 12:30 बजे तक रहेगा। हिंदू धर्म के अनुसार, Govardhan puja से यह सीख मिलती है कि हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और सरंक्षण करना चाहिए। यह पर्व अन्न और जल के महत्व को भी दर्शाता है, जो जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।

Govardhan puja के दिन अन्नकूट पर्व भी मनाया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न प्रकार के भोजन बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है। इस दिन अन्नकूट में चावल, दाल, सब्जियाँ और कई प्रकार के मिष्ठान्न शामिल किए जाते हैं। इस भोजन को बाद में परिवार और भक्तगण मिलकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की कथा:

हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन वासियों की रक्षा के लिए अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया था। यह घटना द्वापर युग की है जब वृंदावन वासियों ने इंद्र देव की पूजा करना बंद कर दिया था और गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी शुरू की थी। इससे इंद्र देव कुपित हो गए और उन्होंने गोकुल में भारी वर्षा भेजी जिससे बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई।

वृंदावन वासियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और इसके नीचे सभी लोगों को आश्रय दिया। सात दिनों तक लगातार वर्षा होती रही लेकिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा और सभी की रक्षा की। इस लीला के कारण श्रीकृष्ण का नाम गोवर्धनधारी पड़ा।

Govardhan puja का विधान:

Govardhan puja के दिन, लोग अपने घरों के आँगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाते हैं और उसके चारों ओर फूल, फल, अक्षत, दीप आदि सजाते हैं। गोवर्धन की प्रतिमा को फूलों से सजाकर उसकी पूजा की जाती है। इसके साथ ही गाय, बछड़े, और अन्य घरेलू पशुओं की भी पूजा की जाती है।

पूजन विधि के अंतर्गत गोवर्धन की परिक्रमा की जाती है और उन्हें दूध, दही, मक्खन आदि का भोग लगाया जाता है। पूजा करते समय ‘गोवर्धन महाराज की जय’ का उद्घोष किया जाता है। इसके बाद गोवर्धन को अर्पित किए गए प्रसाद को सभी भक्तगण ग्रहण करते हैं।

गोवर्धन परिक्रमा का महत्व:

हिन्दू धर्म में गोवर्धन परिक्रमा का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं। परिक्रमा के दौरान भक्तजन गोवर्धन महाराज से अपनी मनोकामनाएँ करते हैं। इस परिक्रमा को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए।

गोवर्धन परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर लंबी होती है, जो भक्तों के लिए अत्यंत पुण्यकारी मानी जाती है। परिक्रमा के दौरान लोग ‘गोवर्धन महाराज की जय’ और ‘श्रीकृष्ण गोवर्धनधारी की जय’ के उद्घोष करते हैं। भक्तजन इस परिक्रमा को पैदल ही पूरी करते हैं, जिससे शारीरिक और मानसिक शुद्धि प्राप्त होती है।

ध्यान रखने योग्य बातें:

इस दिन अपने घर के पास किसी खुली जगह में गोवर्धन बनाना चाहिए। गाय और बछड़े को भोजन कराना चाहिए और उनकी सेवा करनी चाहिए। Govardhan puja के समय श्रीकृष्ण के गोवर्धनधारी स्वरूप का ध्यान करते हुए उनकी आरती और स्तुति करनी चाहिए। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय भगवान श्रीकृष्ण से अपनी इच्छाएँ प्रकट करें और इस परिक्रमा को प्रेम और श्रद्धा के साथ पूरा करें।

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