Tulsi Shaligram Vivah: भारत विवधताओं का देश है जहां अनेक त्योहार और परंपराएँ मानी जाती हैं| देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह (Tulsi Shaligram Vivah) किया जाता है। यह विवाह हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है और पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न किया जाता है।
शालिग्राम को श्रीहरि विष्णु का ही एक साक्षात रूप माना गया है और तुलसी जी की जब भी पूजा होती है तो विष्णु की मूर्ति के साथ नहीं बल्कि उनके विग्रह स्वरूप शालिग्राम (Tulsi Shaligram Vivah) के साथ उनकी पूजा होती है| अब प्रशन्न उठता हैं कि आखिर ऐसा क्या है कि हम तुलसी के पौधे और शालिग्राम का विवाह (Tulsi Shaligram Vivah) करते हैं?
Dev Uthani Gyaras का महत्व:
Dev Uthani Gyaras या देव प्रबोधिनी एकादशी का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह के योगनिद्रा से जागते हैं और सृष्टि के कार्यों में लग जाते हैं।
इसे चातुर्मास का अंत भी माना जाता है, जिसके बाद सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि प्रारंभ होते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह (Tulsi Shaligram Vivah) कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जाता है, जिससे वे भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।
Tulsi Shaligram Vivah की कथा:
तुलसी और शालिग्राम के विवाह (Tulsi Shaligram Vivah) की पौराणिक कथा बहुत प्राचीन है। देवी भागवत पुराण में बताया गया हैं कि शिव ने अपने तेज को एक बार समुद्र में फेंक दिया था। जिससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया जो आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना।
उनकी नगरी का नाम उन्ही के नाम जालंधर नगरी पड़ा | जालंधर महाराक्षस था और उसका विवाह दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा के साथ हुआ | जालंधर अपनी सत्ता के मद में चूर था और उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया|
माता लक्ष्मी ,जलंधर की तरह ही समुद्र से प्रकट हुई थी इसलिए उन्होंने जलंधर को अपने भाई के रूप में स्वीकार किया | फिर उस राक्षस ने माँ पार्वती को पाने की लालसा की और भगवान देवाधिदेव शिव का ही रूप धर कर माता पार्वती के समीप कैलाश पर्वत पर पहुँच गया |
अपने योगबल से माँ पार्वती ने उसे पहचान लिया और वहां से अंतर्ध्यान हो गई। जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जलंधर को वरदान था, जिसके कारण कोई भी देवता जलंधर को परास्त नहीं कर पा रहे थे।
इसीलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत ज़रूरी था। भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुंचे, जहां वृंदा अकेली भ्रमण कर रही र्थी। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गई। ऋषि ने वृंदा के सामने पल में दोनों को भस्म कर दिया।
उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा। ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़।
अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्छित हो कर गिर पड़ीं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें। भगवान ने अपनी माया से पुनः जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया, परंतु स्वयं भी वह उसी शरीर में प्रवेश कर गए।
वृंदा को इस छल का ज़रा आभास न हुआ। जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया।
इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को शिला होने का श्राप दे दिया तथा स्वयं सती हो गई। जहां वृंदा भस्म हुई, वहां तुलसी का पौधा उगा। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा, ‘हे वृंदा।
तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा।
तुलसी और शालिग्राम विवाह की प्रक्रिया:
तुलसी और शालिग्राम का विवाह (Tulsi Shaligram Vivah) देवउठनी एकादशी के दिन ही किया जाता है। इस दिन विशेष विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। सबसे पहले तुलसी के पौधे को अच्छे से सजाया जाता है। इसे दुल्हन (Tulsi Shaligram Vivah) का रूप दिया जाता है और इसके चारों ओर मंडप सजाया जाता है।
शालिग्राम को तुलसी के समीप रखकर वर का प्रतीक माना जाता है। पूरे विवाह (Tulsi Shaligram Vivah) की प्रक्रिया हिंदू वैवाहिक परंपराओं के अनुसार की जाती है। मंत्रोच्चारण के साथ तुलसी और शालिग्राम की प्रतिमा का विवाह संपन्न किया जाता है और लोगों के बीच प्रसाद का वितरण किया जाता है।
डिस्क्लेमर: इस लेख में प्रस्तुत जानकारी ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। विभिन्न माध्यमों से एकत्रित करके ये जानकारियाँ आप तक पहुँचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज़ सूचना पहुँचाना है। viralnewsvibes.com इस जानकारी की सटीकता, पूर्णता, या उपयोगिता के बारे में कोई दावा नहीं करता और इसे अपनाने से होने वाले किसी भी परिणाम के लिए जिम्मेदार नहीं होगा। पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने विवेक और निर्णय का उपयोग करें।