Dussehra 2024: देश की इन 9 जगहों पर रावण नहीं माना जाता बुराई का प्रतीक, दशहरे पर मनाया जाता है शोक

Dussehra 2024: भारत में दशहरा का त्यौहार काफी हर्षों उल्लास के साथ मनाया जाता है | इस साल इसे 12 अक्टूबर को मनाया जायेगा | इस त्यौहार को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन रावण के पुतले का दहन कर भगवान राम की विजय और रावण के अंत का जश्न मनाया जाता है।

रामायण के अनुसार भगवान राम ने उसका वध किया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में कुछ स्थान ऐसे भी हैं जहाँ रावण का दहन नहीं किया जाता, बल्कि इसके विपरीत, उसे सम्मानित किया जाता है और शोक मनाया जाता है? रावण को सामान्य रूप से रामायण में बुराई के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, लेकिन भारत के विभिन्न हिस्सों में उसकी छवि अलग-अलग रूपों में प्रस्तुत की गई है।

कुछ स्थानों पर रावण को एक वीर योद्धा, विद्वान और महान शासक और शिवभक्त के रूप में भी देखा जाता है। इन जगहों पर रावण का दहन नहीं होता, बल्कि उसकी पूजा और सम्मान किया जाता है। इन स्थानों पर दशहरा के दिन रावण का पुतला जलाने के बजाय उसके प्रति आदर और सम्मान व्यक्त किया जाता है। आइए जानते हैं कि ये कौन सी जगहें हैं और यहां रावण का दहन क्यों नहीं होता।

मंदसौर, मध्य प्रदेश में Dussehra:

मध्य प्रदेश के मंदसौर शहर को रावण का ससुराल कहा जाता है। रावण की पत्नी मंदोदरी इसी स्थान की निवासी थीं, और इसी कारण यहां के लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं। मंदसौर के लोग रावण को एक विद्वान और महान शासक मानते हैं और इसलिए यहां रावण का दहन नहीं किया जाता।

Dussehra के दिन यहां रावण की पूजा की जाती है, और लोग उसे सम्मानित करते हैं। यहां की जनता का मानना है कि रावण एक शिव भक्त था और उसे विद्वान ब्राह्मण के रूप में याद किया जाना चाहिए।

कांकेर, छत्तीसगढ़:

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में भी रावण का दहन नहीं किया जाता है। यहां के स्थानीय लोग रावण को अपना आदर्श मानते हैं और उसे बुद्धिमान शासक और महान योद्धा के रूप में देखते हैं।

कांकेर के आदिवासी समाज में रावण की पूजा की जाती है और दशहरे(Dussehra) के अवसर पर लोग शोक व्यक्त करते हैं। यहां के लोग मानते हैं कि रावण एक पराक्रमी राजा था जिसने अपने साम्राज्य को बहुत ही कुशलता से चलाया था।

गढ़चिरौली, महाराष्ट्र:

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के कुछ हिस्सों में रावण का दहन नहीं किया जाता। यहां के स्थानीय लोग रावण को आदिवासी समुदाय का संरक्षक मानते हैं। गढ़चिरौली के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं। दशहरे(Dussehra) के दिन यहां शोक का माहौल होता है, क्योंकि लोग इसे अपने पूर्वज की मृत्यु का दिन मानते हैं।

बिसरख, उत्तर प्रदेश:

उत्तर प्रदेश के नोएडा के पास स्थित बिसरख गांव को रावण का जन्मस्थान माना जाता है। इस गांव के लोग रावण को अपना आदर्श और सम्माननीय मानते हैं, इसलिए यहां दशहरे के दिन रावण का दहन नहीं किया जाता।

बिसरख के लोग रावण की बुद्धिमत्ता और उसके विद्वता को सलाम करते हैं। यहां दशहरा के दिन रावण की स्मृति में शोक मनाया जाता है और उसकी पूजा की जाती है।

जोधपुर, राजस्थान:

राजस्थान के जोधपुर जिले के कई गांवों में रावण का दहन नहीं किया जाता। यहां के ब्राह्मण समाज के कुछ वर्ग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं।

रावण को ब्राह्मण कुल का महान विद्वान और शिव भक्त माना जाता है। इसलिए, दशहरा के दिन यहां रावण के प्रति शोक व्यक्त किया जाता है, और उसके ज्ञान और शक्ति की सराहना की जाती है।

मलवेल्ली, कर्नाटक:

यहां भी रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, रावण एक महान विद्वान और शिव भक्त था, जिसे दहन करना अनैतिक माना जाता है। यहां के लोग मानते है कि रावण एक ज्ञानी और शक्तिशाली राजा की है, जिसे वे सम्मान और श्रद्धा के साथ देखते हैं।

कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश:

बैजनाथ की तरह, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के कुछ हिस्सों में भी रावण का दहन नहीं किया जाता है। यहां के लोग रावण को एक धार्मिक और शिवभक्त राजा मानते हैं, इसलिए दशहरे(Dussehra) के दिन रावण का पुतला जलाने की परंपरा यहां नहीं है। इसके बजाय, रावण के प्रति सम्मान दिखाया जाता है और लोग उसकी शिवभक्ति और विद्वता का गुणगान करते हैं।

बस्तर, छत्तीसगढ़:

बस्तर Dussehra भारत के सबसे अनूठे दशहरा उत्सवों में से एक है, जहां रावण का पुतला जलाने की परंपरा नहीं है। यहां मां दुर्गा की पूजा की जाती है और इसे शक्ति के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस उत्सव में रावण दहन की बजाय देवताओं की शोभायात्रा निकाली जाती है।

गोंड जनजाति, मध्य प्रदेश:

गोंड जनजाति के लोग भी रावण को अपने पूर्वज के रूप में पूजते हैं। वे रावण को सम्मानित करते हैं और उसकी हत्या का उत्सव नहीं मनाते। उनके अनुसार, रावण एक वीर योद्धा और महान ज्ञानी था।