Jagjit Singh: जवान बेटे की मौत के गम में इस सिंगर ने छोड़ दिया था गाना-बजाना

October 09, 2024
Jagjit Singh

Jagjit Singh: जगजीत सिंह, जिन्हें ग़ज़ल के बादशाह के रूप में जाना जाता है, अपनी गहरी आवाज़ से भारतीय संगीत जगत में अमिट छाप छोड़ गए हैं। उनके गाए हुए गीत और ग़ज़लें आज भी श्रोताओं के दिलों में बसे हुए हैं। लेकिन उनकी ज़िंदगी के पीछे एक बेहद दर्दनाक और दिल को छू लेने वाली कहानी छिपी है।

जगजीत सिंह की निजी ज़िंदगी में एक ऐसा हादसा हुआ था जिसने उन्हें संगीत से दूर कर दिया और ग़ज़लों की दुनिया का यह सितारा कुछ समय के लिए पूरी तरह टूट गया था। जगजीत सिंह के बेटे की असामयिक मृत्यु ने न केवल उनके जीवन को झकझोर कर रख दिया, बल्कि इस हादसे के बाद उन्होंने संगीत से कुछ समय के लिए दूरी बना ली थी। कल जगजीत सिंह की पुण्यतिथि है | आइए उनकी जिंदगी के कुछ पहलुओं को जानते हैं |

जवान बेटे की असामयिक मृत्यु:

1980 के दशक के मध्य में, जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की ज़िंदगी में एक भयानक मोड़ आया। उनके इकलौते बेटे विवेक की 1990 में एक कार दुर्घटना में मौत हो गई। विवेक उस समय मात्र 21 साल के थे। इस असामयिक दुर्घटना ने जगजीत और चित्रा की दुनिया को हिला कर रख दिया। एक माता-पिता के लिए औलाद खोने का गम सबसे बड़ा होता है। चित्रा सिंह इस दुख से उबर नहीं पाईं और उन्होंने संगीत से हमेशा के लिए संन्यास ले लिया।

विवेक की मौत के ने जगजीत सिंह को पूरी तरह से तोड़ दिया। वह अपने बेटे के गम में पूरी तरह से टूट गए थे। जगजीत सिंह ने भी कुछ समय के लिए संगीत से दूरी बना ली, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने फिर से गाना शुरू किया। हालांकि, बेटे के जाने का गम उनकी आवाज़ और उनके ग़ज़लों में हमेशा झलकता रहा। उनकी ग़ज़लों में पहले से भी अधिक गहराई और दर्द दिखाई देने लगा। “चिठ्ठी ना कोई संदेश” जैसी ग़ज़लें उनके दुख को स्पष्ट रूप से व्यक्त करती हैं।

Jagjit Singh की ज़िंदगी एवं करियर:

Jagjit Singh का जन्म 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ था। उनका असली नाम जगमोहन सिंह धीमान था, लेकिन बाद में वह जगजीत सिंह के नाम से प्रसिद्ध हुए। बचपन से ही उनका संगीत की ओर गहरा रुझान था। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद संगीत को करियर के रूप में चुना और मुंबई का रुख किया।

1960 के दशक में जब Jagjit Singh ने अपना करियर शुरू किया, तब ग़ज़लों का चलन उतना प्रचलित नहीं था। लेकिन उनकी अनोखी शैली, मधुर आवाज़ और ग़ज़ल गायिकी ने उन्हें लोगों के दिलों तक पहुंचाया। Jagjit Singh ने ग़ज़लों को एक नए अंदाज़ में प्रस्तुत किया, जिसमें आधुनिक संगीत के साथ पारंपरिक ग़ज़ल गायिकी का बेहतरीन संगम था। उन्होंने न केवल हिंदी बल्कि उर्दू और पंजाबी ग़ज़लों को भी नए आयाम दिए।

चित्रा सिंह से मुलाकात:

Jagjit Singh की मुलाकात चित्रा सिंह से मुंबई में हुई थी। चित्रा खुद भी एक प्रतिभाशाली गायिका थीं और दोनों की संगीत में गहरी रुचि ने उन्हें करीब ला दिया। धीरे-धीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं और उन्होंने शादी कर ली। चित्रा और जगजीत ने साथ में कई अद्भुत ग़ज़लें गाईं, जो आज भी ग़ज़ल प्रेमियों के दिलों में जगह बनाए हुए हैं।

जगजीत और चित्रा की जोड़ी ने ग़ज़ल गायिकी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। दोनों की जोड़ी को श्रोताओं ने खूब पसंद किया और उनकी ग़ज़लें हर दिल में बसने लगीं। “वो काग़ज़ की कश्ती”, “तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो” और “चिठ्ठी ना कोई संदेश” जैसी ग़ज़लें आज भी जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की बेहतरीन गायिकी की मिसाल हैं।

जगजीत सिंह का निधन:

जगजीत सिंह की आवाज़ और उनकी ग़ज़लें आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं। 10 अक्टूबर 2011 को जगजीत सिंह का निधन हो गया, लेकिन उनकी ग़ज़लें और उनका संगीत उनकी विरासत के रूप में हमेशा जीवित रहेगा। उन्होंने अपने गानों के जरिए दर्द और प्रेम को एक नए रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय संगीत को अमर कर दिया।