Man alive after post mortem: राजस्थान के झुंझुनू जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है, जो पूरे देश को हिला कर रख देने वाला है। यह घटना (Man alive after post mortem) मानवीय लापरवाही और चिकित्सा तंत्र की खामियों का ऐसा उदाहरण है, जो सोचने पर मजबूर करता है। झुंझुनू में एक शख्स को बेहोशी की हालत में लाया गया। इसके बाद डॉक्टरों ने उसकी जां कर उसे मृत घोषित कर दिया। इसके बाद शव का पोस्टमार्टम (Man alive after post mortem) किया गया और उसे 4 घंटे के लिए डीप फ्रीजर में रख दिया गया। जब शव का अंतिम संस्कार किया जा रहा था तो वह व्यक्ति जिंदा (Man alive after post mortem) हो गया।
बेहोशी की हालत में लाया गया गया मरीज:
घटना झुंझुनू जिले के बीडीके अस्पताल की है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, झुंझुनू के बग्गड़ में रोहिताश नाम का एक दिव्यांग और मानसिक रूप से विक्षिप्त रोहिताश नाम के व्यक्ति को बेहोशी की हालत में सरकारी बीडीके अस्पताल लाया गया। बताया जा रहा है कि इमरजेंसी वॉर्ड में शख्स को सीपीआर दिया गया। इसके साथ ही ईसीजी की गई। बताया जा रहा है कि ईसीजी फ्लैट आई। इसके बाद शख्स को चिकित्सकों ने मृत (Man alive after post mortem) घोषित कर दिया। इसके बाद शव को मोर्चरी में शिफ्ट करवा दिया गया।
Man alive after post mortem:
बताया जा रहा है कि शव को 4 घंटे तक मोर्चरी के डीप फ्रीजर में रखा गया। इसके बाद पोस्टमार्टम और पंचनामा की कार्यवाही की गई और शाम 5 बजकर 5 मिनट पर शव को अंतिम संस्कार के लिए संस्थान को सुपुर्द कर दिया गया। अंतिम संस्कार पर ले जाने के दौरान मृत के शरीर में अचानक हलचल (Man alive after post mortem) होने लगी और वह जिंदा हो गया। इसके बाद तुरंत उसे जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उसकी मौत हो गई।
लापरवाही का मामला:
इस घटना ने चिकित्सा व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पहला सवाल यह है कि डॉक्टर ने बिना उचित परीक्षण के रमेश को मृत घोषित कैसे कर दिया? सामान्यत: किसी व्यक्ति को मृत घोषित करने से पहले नाड़ी की गति, हृदय गति और श्वास की जांच करना अनिवार्य होता है।
दूसरा सवाल यह है कि पोस्टमार्टम जैसी प्रक्रिया के दौरान किसी व्यक्ति के जिंदा (Man alive after post mortem) होने का पता क्यों नहीं चला? पोस्टमार्टम के लिए जिम्मेदार डॉक्टरों और कर्मचारियों ने इस बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया कि रोहिताश में जीवन के लक्षण मौजूद हो सकते हैं।
तीन डॉक्टर सस्पेंड, विभागीय जांच शुरू:
इस मामले में जिला कलक्टर की रिपोर्ट के बाद अस्पताल के तीन डॉक्टरों पर कार्रवाई करते हुए उन्हें सस्पेंड कर दिया गया है। इसमें बीडीके अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. संदीप पचार, डॉ. योगेश जाखड़ और डॉ. नवनीत मील के नाम
शामिल हैं। स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त शासन सचिव की ओर से इस बारे में आदेश जारी किए गए हैं।
आदेश के अनुसार, निलंबन काल के दौरान डॉ. संदीप पचार का मुख्यालय सीएमएचओ ऑफिस जैसलमेर, डॉ. योगेश जाखड़ का मुख्यालय सीएमएचओ ऑफिस बाड़मेर सजा के रूप में किया गया है। वहीं निलंबन काल के दौरान डॉ. नवनीत मील का मुख्यालय सीएमएचओ ऑफिस जालोर रहेगा। इसके साथ ही बीडीके अस्पताल के पीएमओ सहित तीनों डॉक्टरों के खिलाफ विभागीय जांच भी शुरू की गई है।
चिकित्सा विशेषज्ञों की राय:
चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला “कैटोलेक्जी” या “सस्पेंडेड एनीमेशन” का हो सकता है। यह एक दुर्लभ स्थिति है, जिसमें व्यक्ति की हृदय गति और श्वास इतना धीमा हो जाता है कि यह मृत जैसा प्रतीत होता है। ऐसे मामलों में यदि सतर्कता न बरती जाए, तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि किसी व्यक्ति को मृत घोषित करने से पहले न्यूनतम 10-15 मिनट तक उसकी शारीरिक गतिविधियों का गहन निरीक्षण किया जाना चाहिए। भारत जैसे देश में जहां स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। इस प्रकार की घटनाओं के लिए चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण को सुदृढ़ करना आवश्यक है।