Weird Tradition: इस मंदिर में पूजा करने के लिए पुरुषों को करना होता है सोलह श्रंगार, जानिए वजह

September 18, 2024
Weird Tradition

Weird Tradition: भारत, विविधताओं का देश है, जहां धर्म, परंपरा और आस्था की अद्वितीय मिसालें देखने को मिलती हैं। यहां हर राज्य, हर शहर, और गाँव की अपनी अलग-अलग मान्यताएँ (Weird Tradition) और रीति-रिवाज होते हैं। ऐसा ही एक अद्भुत और अनोखा मंदिर केरल के कोल्लम जिले में स्थित है—कोट्टानकुलंगारा श्री देवी मंदिर। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहाँ देवी की पूजा करने के लिए पुरुषों को महिलाओं की तरह सोलह श्रंगार करना पड़ता है।

यह परंपरा (Weird Tradition) अनूठी और चौंकाने वाली है, लेकिन इसके पीछे की कहानी और धार्मिक मान्यताएँ गहरी हैं। हम आपको बताएंगे कि इस विचित्र और प्राचीन परंपरा (Weird Tradition) की क्या वजह है और पुरुषों को देवी की पूजा के लिए महिलाओं के रूप में सोलह श्रंगार क्यों करना पड़ता है।

इसलिए करते हैं पुरुष सोलह श्रृंगार:

कोल्लम में स्थित कोट्टानकुलंगारा श्री देवी मंदिर केरल के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण कितनी शताब्दियों पहले हुआ था, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन इसे एक बहुत ही प्राचीन मंदिर माना जाता है। मंदिर की स्थापना से जुड़ी कई कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से एक मुख्य कथा के अनुसार, यह स्थान पहले चरवाहों और किसानों का क्षेत्र था। एक दिन कुछ किसान इस जगह से गुजर रहे थे, और उन्होंने एक पत्थर के पास अजीब सी ऊर्जा महसूस की।

बाद में उन्हें अहसास हुआ कि वह पत्थर देवी का रूप था। यह भी माना जाता है कि उसी रात देवी ने किसानों को स्वप्न में दर्शन दिए और बताया कि वह यहाँ अपना निवास करना चाहती हैं। देवी ने पुरुषों से कहा कि अगर वे उनकी पूजा करना चाहते हैं तो उन्हें महिलाओं के रूप में सोलह श्रंगार करके आना होगा।

यह है Weird Tradition की वजह:

भारतीय परंपरा में सोलह श्रंगार का महत्व बहुत अधिक है। यह श्रंगार विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है, जिसमें बिंदी, सिंदूर, काजल, चूड़ियाँ, पायल, और अन्य आभूषणों से सजना शामिल होता है। सोलह श्रंगार न केवल सौंदर्य को दर्शाता है, बल्कि यह धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक भी है, जो महिलाओं की देवी के रूप में प्रतिष्ठा को दर्शाता है।

कोट्टानकुलंगारा श्री देवी मंदिर में जब पुरुष सोलह श्रंगार करके देवी की पूजा (Weird Tradition) करते हैं, तो इसका उद्देश्य यह है कि वे अपनी आस्था और समर्पण से स्वयं को पूरी तरह से देवी के चरणों में अर्पित कर रहे हैं। यह पुरुषों के लिए अपनी अहंकार और मर्दानगी को त्यागने का प्रतीक है, जिससे वे पूर्ण समर्पण और भक्ति के साथ देवी की पूजा कर सकें।

उत्सव के दौरान निभाई जाती है अनोखी परंपरा:

हर साल, मार्च के महीने में इस मंदिर में ‘कोट्टानकुलंगारा चाम्याविलक्कु’ नामक उत्सव का आयोजन होता है। इस उत्सव में हजारों पुरुष हिस्सा लेते हैं और सबसे खास बात यह होती है कि वे सभी महिलाओं के परिधान और सोलह श्रंगार धारण करके देवी की पूजा (Weird Tradition) करते हैं।

यह परंपरा सिर्फ किसी धार्मिक नियम या रीति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे भक्ति और आस्था की गहरी भावना के साथ निभाया जाता है। पुरुष न केवल साड़ी, लहंगा, या अन्य महिलाओं के वस्त्र पहनते हैं, बल्कि वे गहने, बिंदी, चूड़ियाँ, काजल, और अन्य श्रंगार की चीजें भी धारण करते हैं। यह श्रंगार उन्हें महिलाओं की भांति सजने का अनुभव कराता है, जिससे वे देवी के प्रति अपनी पूर्ण भक्ति और समर्पण व्यक्त करते हैं।

चाम्याविलक्कु उत्सव की खासियत:

‘चाम्याविलक्कु’ उत्सव कोट्टानकुलंगारा श्री देवी मंदिर का सबसे बड़ा उत्सव है। इस उत्सव के दौरान पुरुष न केवल सोलह श्रंगार करके देवी की पूजा करते हैं, बल्कि वे हाथों में जलती हुई दीप लेकर देवी के सामने नृत्य भी करते हैं। यह दीपक हाथ में लेकर नृत्य करना देवी को प्रसन्न करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

यह उत्सव रात भर चलता है, और इस दौरान हजारों श्रद्धालु मंदिर में आकर पूजा-अर्चना करते हैं। इस उत्सव की खूबसूरती और भव्यता देखते ही बनती है। केरल के इस अनोखे मंदिर और इसकी परंपरा को देखने के लिए हर साल देश-विदेश से लोग आते हैं।