Shradh 2024: हिंदू धर्म में पितरों की मुक्ति के लिए पितृपक्ष का विशेष महत्व माना गया है| यह समय विशेष रूप से उन पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करने का होता है, जिनका निधन हो चुका है। मंगलवार (17 सितंबर) से इस साल के पितृ पक्ष(Shradh) शुरू हो चुके है| कल से अगले 15 दिनों तक हिन्दू परिवारों में श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान के माध्यम से अपने पितरों को तृप्त किया जायेगा।
वैदिक शास्त्रों और पुराणों में विस्तार से पितृ पक्ष का गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक वर्णित किया गया है। पितृ पक्ष के दौरान, एक खास प्रथा को लेकर लोगों के मन में हमेशा सवाल रहता है-कौओं का पितरों से क्या कनेक्शन है? गरुड़ पुराण में इस रहस्य का विस्तार से वर्णन किया गया है, जो बेहद चौंका देने वाला है। आइए जानते हैं, कौओं और पितरों के बीच का गहरा और रहस्यमय संबंध।
Shradh का महत्व:
पितृ पक्ष(Shradh) भाद्रपद माह की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन माह की अमावस्या तक चलता है। यह 15 दिनों की अवधि में लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए विशेष कर्म करते हैं। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि पितरों की आत्माएं पितृलोक में रहती हैं, और श्राद्ध(Shradh) के दिनों में वे पृथ्वी पर अपने वंशजों के घर आती हैं। इस दौरान किए गए कर्म और अर्पित भोजन से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
कौओं का महत्व:
कौओं को पितरों का प्रतीक माना जाता है। पितृ पक्ष के दौरान कौओं को भोजन कराना अत्यधिक शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि कौआ भोजन ग्रहण कर ले, तो समझा जाता है कि पितरों ने भोजन स्वीकार कर लिया है और वे संतुष्ट हो गए हैं।
ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध कर्म का भोजन कौओं को खिलाने से पितरों को मुक्ति और शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं और अपने वंशज को आशीर्वाद देते हैं| लेकिन, सवाल यह है कि पितृ पक्ष में कौओं को ही भोजन क्यों खिलाया जाता है?
गरुड़ पुराण में कौओं का वर्णन:
गरुड़ पुराण, हिन्दू धर्म का एक ऐसा पुराण हैं जिसमें मृत्यु और पुनर्जन्म के रहस्यों का वर्णन किया गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार, कौए को यमराज का प्रतिनिधि माना जाता है। और कौओं को यमराज का आशीर्वाद प्राप्त है| यमराज ने कौवे को आशीर्वाद दिया था कि उन्हें दिया गया भोजन पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करेगा |
दरअसल ऐसा कहा जाता है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसकी आत्मा यमलोक की ओर प्रस्थान करती है| कौआ पितरों की आत्मा का प्रतीक है, जो इस लोक और परलोक के बीच का संदेशवाहक होता है। जब श्राद्ध के दौरान कौए को भोजन दिया जाता है, तो वह उस भोजन को पितरों तक पहुंचाने का काम करता है।
गरुड़ पुराण में वर्णित है कि जब कोई व्यक्ति श्राद्ध में पिंडदान करता है, तो यमराज के दूत कौओं के रूप में पिंड का सेवन करने आते हैं। इससे पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए पितृ पक्ष के दौरान एक तरफ जहां ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है तो वहीं कौओं को भी भोजन कराने का बहुत महत्व होता है| ऐसा भी माना जाता हैं कि इस दौरान हमारे पूर्वज कौओं के रूप में हमारे पास आ सकते हैं|
कौओं को लेकर अन्य धार्मिक मान्यताएं:
कौओं को लेकर भारतीय संस्कृति में कई धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि कौआ एकमात्र ऐसा पक्षी है, जिसे भविष्य देखने की क्षमता प्राप्त है। कई मान्यताओं के अनुसार, कौए का आपके घर आकर बैठना शुभ और अशुभ संकेतों का सूचक हो सकता है।
यदि कौआ आपके घर में भोजन ग्रहण करता है, तो इसे शुभ संकेत माना जाता है कि आपके पितर आपसे प्रसन्न हैं। वहीं दूसरी ओर, कौआ यदि घर के ऊपर मंडराता है, तो इसे अशुभ संकेत माना जाता है। कौओं को लेकर यह मान्यता भी है कि वे परलोक के संदेशवाहक होते हैं और किसी के निधन की सूचना पहले से ही दे सकते हैं।
पितृ पक्ष(Shradh) के दौरान कौओं को भोजन कैसे कराएं:
पितृ पक्ष(Shradh) के दौरान कौओं को भोजन कराना बहुत ही आसान प्रक्रिया है, लेकिन इसे सही ढंग से करना जरूरी है। श्राद्ध के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पितरों का तर्पण करने के बाद श्राद्ध के लिए तैयार किया गया भोजन कौओं को अर्पित करें।
कौओं को भोजन अर्पित करने के लिए किसी स्वच्छ स्थान का चयन करें। श्राद्ध का भोजन सामान्यतया सादा और शुद्ध होता है, जिसमें चावल, दाल, घी, मिठाई और मौसमी फल शामिल होते हैं।मान्यता के अनुसार, यदि कौआ तुरंत भोजन ग्रहण कर लेता है, तो यह इस बात का प्रतीक है कि आपके पितर तृप्त हो गए हैं।