Sharda Sinha: बिहार की लोकगायिका शारदा सिन्हा (Sharda Sinha), जिन्हें उनके चाहने वाले “बिहार कोकिला” के नाम से पुकारते थे, का 5 नवंबर 2024 को दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में निधन हो गया। 72 वर्षीय शारदा (Sharda Sinha) का लंबे समय से मल्टीपल मायलोमा, एक प्रकार का रक्त कैंसर, का इलाज चल रहा था। उनके निधन की खबर से न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई, विशेषकर उन परिवारों में जो छठ पूजा के अवसर पर उनके (Sharda Sinha) मधुर गीतों को एक परंपरा के रूप में सुनते थे।
शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) का अंतिम संस्कार पटना के गुलबी घाट पर किया जाएगा। शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमन सिन्हा ने यह जानकारी साझा की। उन्होंने बताया गुरुवार सुबह 8 से 9 के बीच अंतिम संस्कार किया जाएगा। शारदा जी की मधुर और गहन आवाज ने उन्हें लोक संगीत का पर्याय बना दिया था और उनका योगदान लोक संगीत के क्षेत्र में अतुलनीय माना जाता है।
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बचपन से ही थी संगीत में रुचि:
शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) का जन्म बिहार के सुपौल जिले में हुआ था। उन्हें बचपन से ही संगीत में रुचि थी और अपने परिवार से प्रेरणा लेकर उन्होंने संगीत की शिक्षा प्राप्त की। बाद में उन्होंने अपनी पढ़ाई संगीत विषय में पूरी की और धीरे-धीरे लोकगायन में अपनी पहचान बनाई। उनकी आवाज में वो खास मिठास और जोश था जो श्रोताओं को अपनी ओर खींचता था। शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) ने अपने करियर के दौरान भोजपुरी, मैथिली, और हिंदी में कई हिट गाने दिए।
उनकी आवाज का जादू न केवल बिहार बल्कि उत्तर प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में भी पहुंचा। उनके सबसे प्रसिद्ध गीतों में “कहे तोसे सजना” (फिल्म मैंने प्यार किया से) और “तार बिजली से पतले हमारे पिया” (फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर से) शामिल हैं। इन गीतों ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और वे पारंपरिक संगीत प्रेमियों के साथ-साथ बॉलीवुड श्रोताओं के बीच भी लोकप्रिय हो गईं।
पद्म पुरस्कार और अन्य सम्मान:
शारदा सिन्हा को भारतीय लोक संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें 1991 में पद्म श्री और 2018 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कई अन्य पुरस्कार भी जीते, जिससे वे बिहार और पूरे भारत में लोक संगीत की मल्लिका बन गईं। उन्होंने अपने संगीत से बिहार के लोकगीतों को नए आयाम दिए और उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनके गीतों के माध्यम से भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार होता रहे।
छठ पूजा और Sharda Sinha के अमर गीत:
छठ पूजा, बिहार और उत्तर प्रदेश का प्रमुख पर्व है, और शारदा सिन्हा के गीत इस पर्व की रौनक बढ़ाते थे। छठ गीतों के बिना यह पर्व अधूरा माना जाता था, और शारदा जी की मधुर आवाज इस पर्व का अभिन्न अंग बन चुकी थी। “कांच ही बांस के बहंगिया” जैसे छठ गीत आज भी लोगों की जुबां पर बसे हुए हैं। हर साल छठ पूजा के समय शारदा सिन्हा के गीतों की धुनें हर गली-मोहल्ले में गूंजती थीं, और लोग उनकी आवाज में इस पर्व की भव्यता का अनुभव करते थे।
2017 में हुआ मल्टीपल मायलोमा:
शारदा सिन्हा का निजी जीवन भी संघर्षों से भरा रहा। उन्होंने 1970 में ब्रजकिशोर सिन्हा से शादी की और उनके दो बच्चे हैं – एक बेटा और एक बेटी। पिछले कुछ वर्षों से उन्हें स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। उन्हें 2017 में मल्टीपल मायलोमा का पता चला, और उन्होंने इस बीमारी का बहादुरी से मुकाबला किया। सितंबर 2024 में उनके पति का ब्रेन हैमरेज के कारण निधन हो गया, जिसने उनके स्वास्थ्य को और भी कमजोर कर दिया। इसके बावजूद, उन्होंने इस साल छठ पूजा के लिए एक नया गीत जारी किया, जो उनकी लगन और समर्पण को दर्शाता है।
हर क्षेत्र के दिग्गजों ने दी श्रद्धांजलियां:
शारदा सिन्हा का स्वास्थ्य पिछले कुछ हफ्तों से तेजी से बिगड़ रहा था, और उन्हें एम्स, दिल्ली में भर्ती कराया गया था। उनका निधन 5 नवंबर 2024 को हुआ, जो संयोगवश छठ पूजा का पहला दिन था। उनके निधन के बाद से देश के कई बड़े नेताओं, कलाकारों और संगीतकारों ने उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता रवि किशन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि बिना उनकी आवाज के हर पर्व अधूरा लगेगा। मनोज तिवारी ने भी उन्हें याद करते हुए कहा कि शारदा दीदी का जाना भोजपुरी और लोक संगीत की दुनिया के लिए अपूरणीय क्षति है।
बॉलीवुड के कई सितारों, जैसे मनोज बाजपेयी और नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया। गीतकार वरुण ग्रोवर, जिन्होंने उनके साथ काम किया था, ने कहा कि शारदा जी की आवाज हर त्योहार और उत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, और उनके बिना बिहार के लोक संगीत का संसार अधूरा हो गया है।