Baba Harbhajan: ऐसा माना जाता है सिक्किम सीमा पर बाबा हरभजन सिंह आज भी सीमा पर देश की सुरक्षा कर रहे है। लोगों का मानना है कि पंजाब रेजिमेंट के शहीद जवान बाबा हरभजन सिंह की आत्मा पिछले 50 साल से भी ज्यादा समय से देश के सीमा की रक्षा कर रही है।
Baba Harbhajan: परिस्थितियां कैसी भी हो, हमारे सैनिक हर हाल में देश की सीमओं की सुरक्षा करते हैं। वे अपने परिवार से दूर रहकर भीषण सर्दी, गर्मी और बारिश में भी दुश्मनों से हमारे देश की रक्षा करते हैं। देश की सुरक्षा करते हुए कई सैनिक शहीद भी हो जाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि एक सैनिक ऐसे भी हैं, जो शहीद होने के बाद भी देश की रक्षा कर रहे हैं। इन शहीद सैनिक का मंदिर भी बना हुआ है।
इस मंदिर के रख रखाव की जिम्मेदारी सेना के पास ही है। इतना ही नहीं हर माह इस शहीद सैनिक को तनख्वाह भी मिलती है। इन शहीद सैनिक का नाम है बाबा हरभजन सिंह की। ऐसा माना जाता है सिक्किम सीमा पर बाबा हरभजन सिंह आज भी सीमा पर देश की सुरक्षा कर रहे है। लोगों का मानना है कि पंजाब रेजिमेंट के शहीद जवान बाबा हरभजन सिंह की आत्मा पिछले 50 साल से भी ज्यादा समय से देश के सीमा की रक्षा कर रही है।
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Baba Harbhajan रखते हैं दुश्मन की पूरी खबर:
बाबा हरभजन सिंह के मंदिर में तैनात सैनिकों का मानना है कि चीन की तरफ से आने वाले किसी भी खतरे के बारे में बाबा हरभजन सिंह की आत्मा पहले ही बता देती है। इसके अलावा यदि भारतीय सैनिकों को चीन के सैनिकों का कोई भी मूवमेंट पसंद नहीं आता तो वो चीनी सैनिकों को भी पहले ही बता देते हैं।
भारत-चीन की फ्लैग मिटिंग में लगती है कुर्सी:
साथ ही कहा जाता है कि सिर्फ भारतीय सैनिकों को ही नहीं बल्कि चीनी सैनिकों को भी बाबा हरभजन सिंह पर पूरा यकीन है। इसी कारण भारत—चीन की होने वाली फ्लैग मिटिंग में एक खाली कुर्सी लगाई जाती है जो बाबा हरभजन के नाम की होती है ताकि वह मीटिंग अटेंड कर सकें।
पंजाब रेजिमेंट में थे बाबा हरभजन सिंह:
बाबा हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 को गुंजरावाल पंजाब(वर्तमान पाकिस्तान) के सदराना गांव में हुआ। भारतीय सेना के जवान उन्हें “नाथुला के नायक” के रूप में याद करते हैं। हरभजन सिंह साल 1966 में 23वीं पंजाब रेजिमेंट में बतौर जवान भर्ती हुए थे। 2 साल बाद उनकी ड्यूटी सिक्किम में लगाई गई लेकिन एक हादसे में वह शहीद हो गए। बताया जाता है कि एक दिन हरभजन सिंह खच्चर पर बैठ कर नदी पार कर रहे थे, तभी खच्चर सहित हरभजन नदी में बह गए। उनका शव नदी के पानी में बहकर काफी दूर चला गया था।
काफी तलाशने के बाद भी उनका शव नहीं मिला। इसके बाद एक दिन एक साथी सैनिक को सपने में बाबा हरभजन आए और बताया कि उनका शव किस जगह पर है। उस सैनिक ने अपने साथियों को सपने की बात बताई। इसके बाद कुछ सैनिक उस जगह पर गए तो वहां हरभजन सिंह का शव पड़ा हुआ था। पूरे राजकीय सम्मान के साथ हरभजन का अंतिम संस्कार किया गया। इसके बाद साथी सैनिकों ने बाबा हरभजन के बंकर को एक मंदिर का रूप दे दिया।
कहां है बाबा हरभजन का मंदिर?
सेना की ओर से उनके लिए एक भव्य मंदिर बनवाया गया। यह मंदिर ‘बाबा हरभजन सिंह मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। बाबा हरभजन सिंह का यह मंदिर गंगटोक में जेलेप्ला दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच 13000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पुराना बंकर वाला मंदिर इससे भी 1000 फीट ज्यादा ऊंचाई पर है।
मिलती है हर माह तनख्वाह:
सैनिकों का मानना है कि मौत के बाद भी बाबा हरभजन की आत्मा आज भी सीमा पर ड्यूटी दे रहे हैं। बाबा हरभजन को हर माह तनख्वाह भी दी जाती है और सेना में उनकी एक रैंक भी है। बताया जाता है कि अन्य सैनिकों की तरह कुछ साल पहले तक बाबा हरभजन को साल में दो महीने की छुट्टी पर उनके गांव भी भेजा जाता था।
इसके लिए ट्रेन में उनकी सीट रिजर्व की जाती थी और उनका सामान भी गांव भेजा जाता था। लेकिन कुछ लोगों द्वारा इस पर आपत्ति जताने के बाद बाबा हरभजन को छुट्टी पर भेजना बंद कर दिया। अब बाबा हरभजन साल के बारह महीने अपनी ड्यूटी पर रहते हैं।
कपड़ों में मिलती है सलवटें!
मंदिर में बाबा का एक कमरा भी है, जिसमें प्रतिदिन सफाई करके बिस्तर लगाए जाते हैं। कहा जाता है कि उस कमरे में बाबा की सेना की वर्दी और जूते रखे जाते है। लोगों का कहना है कि रोज सफाई करने के बावजूद उनके जूतों में कीचड़ और चद्दर पर सलवटें पाई जाती हैं।